Manjeet kumar

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कृष्णा का क्रोध

यह कैसी पुष्पवर्षा होता, 


किस वीर का ना जाने आगमन होता,

दुर्योधन मन -मन विचलित होता, 

अपने पिता की और चिंतित देखता,

है द्वारपालो की स्वर जब ऊंची होता, 

नजर द्वार पे पड़े तो शीश झुकता,

है पावन जिसके दर्शन होते, 

आज कृष्ण खुद देवदूत बन के आते।

है दुर्योधन में कृष्ण देवदूत,

 दिलाने आया पांडवों का हक और सम्मान,

ना मांगे वो ज्यादा दो बस कुछ टुकड़े, 

मिल जुल के रहे और बना रहे आधार सम्मान,

सुन यह बातें दुर्योधन ने उपहास किया, 

पल भर में कृष्ण को बंदी बनाने का आदेश दिया,

अचानक ना जाने कहा से गर्जना हुई, 

बिजली बीच दरबार में आ गिरी,

हिल पड़े सब के सिंहासन , 

गूंज उठा आसमान और बोला जय हो देवकीनंदन,

आंखें लाल से प्रतीत हुई,

 जब कृष्णा की मुट्ठी गुस्से से भींच गई,

क्रोधित हो एक नजर दुर्योधन पे पड़ी,

 सुदर्शन चक्र आगमन कर उनके उंगली पे स्थिर हुई,

हुंकार भरी प्रभु ने ,

 विस्तार और प्रचंड सा स्वरूप दर्शन दिया,

है उजियारे के प्रकोप से कितने आंखें अंधिया गए,

 विधुर और धृतराष्ट्र बस हरी हरी बोल नयनसुख पा रहे,

"है दुर्योधन ,अग्नि मुझमें समाहित है,

 पवन से तेज मेरी सवारी है,

तेरे लोहे के जंजीरों को पिघला दूंगा,

 पल भर में हस्तिनापुर को राख कर जाऊंगा,

है मुझमें यह सृष्टि समाती, विष्णु अवतार में ,

 भक्तो का प्रिय हू में भला मुझे कौन बांध पाएगा,

मूर्ख में तो संधि लेके आया था, 

भाईयो मे एकजुट प्रेम करवाने का संदेश लाया था,

है व्याकुल भीम सीना चीर देने को, 

अर्जुन के वाण सजे तरकश में कौरवों के प्राण हरने को,

तेरा अंत मुझे ज्ञात है फिर भी दूत बनके आया, 

तूने आज एक सृष्टिरचयता को ही बंधक बनाया,

अब तुझे कौन बचाएगा जब तू कृष्ण को ही बंधक बनाएगा , 

अब होगा कुरुक्षेत्र में रक्त का बहाव,

परिजन और भाईयो के घड़ी में विलाप और माथे पे कलंक पे रोएगा दुर्योधन राजन,

में तो एक संदेशवाहक हु अपने कर्तव्य पे हू, 

ले तू मेरी सेना पर चालक तो मे अर्जुन का ,

दया आती है तुझपे पर अब मजबूर हू, 

अपने कर्मो से तू ही काल के समीप है,

तू क्या बात का अभिमान करता है,

वनवास में छिपे और वेश बदले पांडवों को कम आंकता है,

धूप में जल के पसीने को सुखा कर ,अर्जुन एक श्रेष्ठ धनुधारी बना है,

तालीम पांडवों को कभी शिव , कभी हनुमान और कभी खुद मेने तालीम दिया है,

कर तू अहंकार अब तेरा मन के तू अधीन है, पराजय तेरी निश्चित है बस युद्ध को देर है,

मैत्री तेरी एक डंक सी है, 

भाईयो का मूल्य तेरे लिए मिट्टी है,

धर्म के रास्ते पे मुड़ना तेरा असंभव है, 

बस तेरे मुर्दे शरीर में एक कुपित आत्मा है,

होगा ऐसा विशाल युद्ध और आमने सामने होगे योद्धाओं का टकराव,

 मारेंगे और मरेंगे और होगा असीम विलाप,

कुरुक्षेत्र की धरती अब लाल होगी और न निशान मिटेगा,

युगों युगों तक यह महाभारत लोगों को शिक्षित करेगा ,

है विधुर ,मेरे प्रिय सर्वज्ञानि , नही मान रहे तुम्हारी बात , 

है जब महाभारत का अंत समा जाना मेरे अंदर है मेरा यह तुम्हे आशीर्वाद ,

चलता हु में अब वापसी युद्ध का संदेश दूंगा,

 दुर्योधन का अंत अब पांडवों के हाथो बड़ा दरदानिये होगा।

जाते देख प्रभु को विचलित हो गए सारे सभाजन,

 प्रश्न उठाए अपने दुर्योधन राजन पर ,

है सामना दिव्य शक्ति से हमारा और मौत सच लगे, 

है राजन अब युद्ध हम कैसे लड़े,

सुन इनकी बातें दुर्योधन का पसीना छूट गया, 

वो दरबार समाप्त कर अपने राजभवन की और चल गया।


















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2 Comments

Kumawat Meenakshi Meera

05-Jun-2021 09:21 PM

Nice , hrday स्पर्शी

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Ravi Goyal

05-Jun-2021 09:06 PM

बहुत उम्दा लेखन 👌👌

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